तरस रहा हूँ अदम आर्मीदा ख़ुशबू को कहाँ से ढूँड के लाऊँ रमीदा आहू को ज़हे-नसीब कि तस्कीन दे रहा है आज तुम्हारा हुस्न मिरे इश्क़-ए-सर-ब-ज़ानू को चमक रहा है तिरी राह में तिरी ख़ातिर है इंतिज़ार तिरा हर दिए को जुगनू को सितम कि अहल-ए-मोहब्बत भी रह गए नाकाम समझ न पाए जमाल-ए-हज़ार-पहलू को उतारा उम्र-ए-गुरेज़ाँ के रस्ते जोगी ने हमारे सर से कई जोगिनों के जादू को हज़ार हीले बहाने से 'कृष्ण-मोहन' ने शिकार-ए-शौक़ किया है निगार-ए-दिल-जू को