तारीकियों में जल के वो क़िंदील की तरह सहरा-बदन से गुज़री है इक झील की तरह कल रात मेरे जिस्म ने महसूस की थकन दो-गाम के सफ़र में कई मेल की तरह बे-ताल का इलाक़ा है चलना सँभाल कर उल्टे लटक न जाओ अबाबील की तरह कल रात मुझ पे हमला किया एक ख़्वाब ने मुर्दा बदन पे भूकी किसी चील की तरह मैं था नशे में रात कोई रू-ब-रू तो था लगता था ख़द्द-ओ-ख़ाल से जिबरील की तरह