तर्जुमानी-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त का मौसम भी नहीं शो'ला-ए-ग़म भी नहीं मौज-ए-तबस्सुम भी नहीं कोई उनवाँ कोई सूरत नहीं वज्ह-ए-तस्कीन वहशत-ए-दिल की दवा जान-ए-जहाँ तुम भी नहीं पा-ब-ज़ंजीर हुई जाती है पर्वाज़-ए-ख़याल दिल की आवाज़ में जज़्बों का तरन्नुम भी नहीं फिर ये क्या शय है जो रखती है हिरासाँ शब-ओ-रोज़ बहर-ए-एहसास की मौजों में तलातुम भी नहीं