तरवार खींच हम को दिखाते हो जब न तब क्या मर रहे जवाँ को सताते हो जब न तब तक़्सीर हम से कौन सी ऐसी हुई वक़ूअ' मुँह पर जो हाथ मेरे धिराते हो जब न तब अज़-बस मिज़ाज हम से तुम्हारा कशीदा है आज़ुर्दा बात में हुए जाते हो जब न तब अब तो रखा है काट हमारा ये आप ने ग़ैरों से मिल पतंग उड़ाते हो जब न तब इक बात का हमारी बतंगड़ बनाते हो सौ झूट सच को अपने छुपाते हो जब न तब ऐ वाइ'ज़ो ये क्या तुम्हें बकवास लग गई मेरी सुनो तुम अपनी ही गाते हो जब न तब हम दर्द-ए-दिल कहें तो जवाब इस मज़े से दो क़िस्सा 'मुहिब' ये किस को सुनाते हो जब न तब