तसव्वुर के सहारे यूँ शब-ए-ग़म ख़त्म की मैं ने जहाँ दिल की ख़लिश उभरी तुम्हें आवाज़ दी मैं ने तलब की राह में खा कर शिकस्त-ए-आगही मैं ने जुनूँ की कामयाबी पर मुबारकबाद दी मैं ने दम-ए-आख़िर बहुत अच्छा किया तशरीफ़ ले आए सलाम-ए-रुख़्सताना को पुकारा था अभी मैं ने ज़बाँ से जब न कुछ यारा-ए-शरह-ए-आरज़ू पाया निगाहों से हुज़ूर-ए-हुस्न अक्सर बात की मैं ने नशेमन को भी इक परतव क़फ़स का जान कर 'अनवर' बसा-औक़ात की है बिजलियों की रहबरी मैं ने