तसव्वुर में भी जिस की जुस्तुजू करता है दिल मेरा उसी से हिज्र में भी गुफ़्तुगू करता है दिल मेरा नदामत से गुनाहों पर जो रोती हैं कभी आँखें इन्ही पाकीज़ा अश्कों से वुज़ू करता है दिल मेरा तिरी यादों के ख़ंजर ज़ेहन को जब चाक करते हैं उसे झूटी तसल्ली से रफ़ू करता है दिल मेरा जसारत देखने की जिस को कोई भी नहीं करता उसी से दो-दो बातें रू-ब-रू करता है दिल मेरा गुज़ारे थे जो मद-होशी के आलम में कभी 'साहिल' उन्ही लम्हों की फिर से आरज़ू करता है दिल मेरा