तसव्वुर से किसी के मैं ने की है गुफ़्तुगू बरसों रही है एक तस्वीर-ए-ख़याली रू-ब-रू बरसों हुआ मेहमान आ कर रात भर वो शम्अ'-रू बरसों रहा रौशन मिरे घर का चराग़-ए-आरज़ू बरसों बराबर जान के रक्खा है उस को मरते मरते तक हमारी क़ब्र पर रोया करेगी आरज़ू बरसों चमन में जा के भूले से मैं ख़स्ता-दिल कराहा था किया की गुल से बुलबुल शिकवा-ए-दर्द-ए-गुलू बरसों अगर मैं ख़ाक भी हूँगा तो 'आतिश' गर्द-बाद-आसा रखेगी मुझ को सर-गश्ता किसी की जुस्तुजू बरसों