तसव्वुर में मिरे का'बा न अब बुत-ख़ाना आता है नज़र हर सम्त मुझ को जल्वा-ए-जानाना आता है हुआ हूँ ऐसा बे-ख़ुद इक बुत-ए-काफ़िर की उल्फ़त में कि का'बे में भी अब मुझ को नज़र बुत-ख़ाना आता है हक़ीक़त में नुमूद-ए-हुस्न ही है इश्क़ का बाइ'स नुमाइश हुस्न की होती है जब परवाना आता है ये दुनिया-ए-मोहब्बत भी इलाही कैसी बस्ती है जो आता है यहाँ वो होश से बेगाना आता है गरेबाँ चाक दामन पुर्ज़ा पुर्ज़ा ख़ाक-आलूदा नई सज-धज निराली शान से दीवाना आता है शब-ए-ग़म मौत आती है न वो आते हैं ऐ 'फ़ाज़िल' लबों पर दम निकल जाने को बेताबाना आता है