तस्वीर में रंग भर रहे हैं मिलने का इरादा कर रहे हैं ख़ुशियाँ ही नहीं थीं साथ मेरे ग़म भी मेरे हम-सफ़र रहे हैं आँखें तो खुली हुई थीं फिर भी हर बात से बे-ख़बर रहे हैं कोई राहत मिली न अहल-ए-फ़न को आराम से बे-हुनर रहे हैं बाक़ी नहीं दिल में शौक़-ए-परवाज़ मुद्दत से बे-बाल-ओ-पर रहे हैं उर्दू सी ज़बाँ पे कुछ मुख़ालिफ़ हर सम्त से वार कर रहे हैं इक उम्र से अहल-ए-दिल के डेरे तलवार की धार पर रहे हैं मुश्ताक़ तो जा चुके हैं 'कौसर' अब किस लिए बन-सँवर रहे हैं