तसव्वुरात के ख़ाकों में तेरा अंग भरे कभी मुसव्विर-ए-हस्ती कुछ ऐसा रंग भरे चमक उठे मिरे ख़्वाब-ओ-ख़याल की दुनिया यूँ मेरी ज़ात में जल्वों के जल-तरंग भरे ख़याल-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ फिर न हो मोहब्बत में तिरी निगाह कभी दिल में वो उमंग भरे ठहर न जाए कहीं आज फिर से नब्ज़-ए-हयात पिला वो जाम कि जो ख़्वाहिशों में जंग भरे सुरूर दे वो कि हो वज्द में जुनूँ रक़्साँ तो साज़ छेड़ कभी ऐसे भी तरंग भरे पलट के वार भी करते कमीन-गाह पे क्या हमें तो तीर ही बख़्शे गए हैं ज़ंग भरे ब-तर्ज़-ए-नौ लिया जाए फिर इम्तिहान-ए-दिल गुलाब शाख़ पे खिलने लगें जो संग भरे हयात-ए-नौ ही करे जुम्बिशें अता उन को नज़र से जाम पिलाए गए जो भंग भरे भटक न जाएँ अगर हम तो क्या करें 'ख़ावर' जमाल-ए-यार के रस्ते हैं जब सुरंग भरे