तसव्वुरात की दुनिया बसाए बैठा हूँ ख़ज़ीना-हा-ए-मोहब्बत लुटाए बैठा हूँ तसव्वुरात की दुनिया में महव हूँ इतना कि अपने आप को दिल से भुलाए बैठा हूँ किसी हसीन का चेहरा है सामने मेरे उसी को क़िबला-ओ-काबा बनाए बैठा हूँ मैं मय-कदे की बहारों को देख कर साक़ी किसी के नश्शे पे नज़रें जमाए बैठा हूँ तुम्हारे वा'दा-ए-फ़र्दा पे ए'तिबार नहीं मगर उमीद की शमएँ जलाए बैठा हूँ भटक गया हूँ मगर रास्ता न पूछूँगा अजीब ज़िद है कि दिल में बिठाए बैठा हूँ सफ़ीना डूब रहा है मगर ख़ुदा से नहीं मैं नाख़ुदा से उमीदें लगाए बैठा हूँ पहुँच ही जाऊँगा मंज़िल पे एक दिन 'सादिक़' अगरचे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिटाए बैठा हूँ