तौर बे-तौर हुए जाते हैं By Ghazal << दिल ही दिल में घुट के रह ... रंग भरते जा रहे हैं रफ़्त... >> तौर बे-तौर हुए जाते हैं अब वो कुछ और हुए जाते हैं छलकी पड़ती है निगाह-ए-साक़ी दौर पर दौर हुए जाते हैं तू न घबरा कि तिरे दीवाने ख़ूगर-ए-जौर हुए जाते हैं इश्क़ के मसअला-हा-ए-सादा क़ाबिल-ए-ग़ौर हुए जाते हैं Share on: