तेग़-ए-बर्रान निकालो साहब दिल के अरमान निकालो साहब घर से रखते हो क़दम क्यूँ बाहर न मिरी जान निकालो साहब देख रहने से ख़फ़ा हो तो मिरी चश्म-ए-हैरान निकालो साहब है ये नासूर-ए-जिगर की बत्ती तुम न पैकान निकालो साहब रहने दो घर में न मुझ पर नाहक़ रख के बोहतान निकालो साहब बार अग़्यार को ख़ल्वत में न दो हैं बद इंसान, निकालो साहब है मिरी तरह तुम्हारा कहीं ध्यान दिल से ये ध्यान निकालो साहब गाली नाहक़ न किसी के हक़ में मुँह से हर आन निकालो साहब हाए ये रंजिश-ए-बेजा दिल से किसी उन्वान निकालो साहब सर-ए-बाज़ार न बैठा करो तुम कुछ तो अब शान निकालो साहब गर्म-बाज़ारी की ख़ातिर सर-ए-राह तुम न दूकान निकालो साहब हसरत-ए-वस्ल है 'जुरअत' को कमाल लो ये अरमान निकालो साहब