तेज़ आँधी से ख़फ़ा है कोई टूट कर बर्ग गिरा है कोई मुझ को महसूस हुआ है अक्सर दीद के पार छुपा है कोई रात महताब को देखा तो लगा दूर से देख रहा है कोई बुझ गया क़ुमक़ुमा जो कमरे का यूँ लगा रूठ गया है कोई ख़ुश्क झोंकों का सितम सहने को फूल पतझड़ में खिला है कोई रात के बहर में ग़ोता-ज़न है नींद को ढूँड रहा है कोई