तेज़ हवा और शब-भर बारिश इन्द्र चुप और बाहर बारिश ऐसे पहले कब बरसी थीं आँखें और बराबर बारिश सहरा तो प्यासे का प्यासा और भरे दरिया पर बारिश इस सुर-ताल का और मज़ा था कच्चे घर की छत पर बारिश झूम रहे हैं भीग रहे हैं पेड़ परिंदे मंज़र बारिश मैं ने बादल को भेजी थी इक काग़ज़ पर लिख कर बारिश मेरे अश्कों से लिक्खे को वो पढ़ता है अक्सर बारिश कौन ये देखे दीदा-ए-पुर-नम इक बारिश के अंदर बारिश याद बहुत आते हैं 'जानाँ' हाथ में हाथ और सर पर बारिश