तीर जो उस कमान से निकला जिगर मुर्ग़-ए-जान से निकला निकली थी तेग़ बे-दरेग़ उस की मैं ही इक इम्तिहान से निकला गो कटे सर कि सोज़-ए-दिल जों शम्अ' अब तो मेरी ज़बान से निकला आगे ऐ नाला है ख़ुदा का नाँव बस तो न आसमान से निकला चश्म-ओ-दिल से जो निकला हिज्राँ में न कभू बहर-ओ-कान से निकला मर गया जो असीर-ए-क़ैद-ए-हयात तंगना-ए-जहान से निकला दिल से मत जा कि हैफ़ उस का वक़्त जो कोई उस मकान से निकला उस की शीरीं-लबी की हसरत में शहद पानी हो शान से निकला ना-मुरादी की रस्म 'मीर' से है तौर ये इस जवान से निकला