तीर ख़त्म हैं तो क्या हाथ में कमाँ रखना इस मुहीब जंगल में हौसला जवाँ रखना क्या पता हवाएँ कब मेहरबान हो जाएँ पानियों में जब उतरो साथ बादबाँ रखना रंजिशें भुला देना फ़ासले मिटा देना इक महीन सा पर्दा फिर भी दरमियाँ रखना हम भी होंट सी लेंगे जी सके तो जी लेंगे क्या कोई ज़रूरी है बोलती ज़बाँ रखना ये घड़ी तो आई थी यूँ ही सरगिरानी थी अब फ़ुज़ूल लगता है कोई साएबाँ रखना लहर लहर बिखरी है क़हर क़हर दरिया में बे-जवाज़ लगता है सई-ए-राएगाँ रखना दूसरों की ज़िद हूँ मैं कितना मुनफ़रिद हूँ मैं ये भी क्या कि सब जैसा सर पे आसमाँ रखना