तीर पर तीर लगे तो भी न पैकाँ निकले यारब इस घर में जो आवे न वो मेहमाँ निकले नेक-ओ-बद में जो नहीं जंग अदम में तो भला क्यूँ गुल ओ ख़ार बहम दस्त-ओ-गरेबाँ निकले दस्त-ए-चालाक जुनूँ सीना को भी कर दे चाक ता कहीं पहलू से मेरे दिल-ए-नालाँ निकले कौन सी रात वो होवे कि जो आवे शब-ए-वस्ल कौन सा रोज़ वो हो जो शब-ए-हिज्राँ निकले गुलशन-ए-दिल में भी थी अपनी कुछ उल्टी तासीर तुख़्म-ए-उम्मीद जो बोए गुल-ए-हिरमाँ निकले कर नज़र रुख़ को तिरे कुफ़्र से निकले काफ़िर ज़ुल्फ़ को देख तिरी दीं से मुसलमाँ निकले जितना कहते हैं निकलता है 'हसन' घर से तिरे ग़ुस्से हो हो यही कहता है अभी हाँ निकले