तीर वो तीर नहीं जो न जिगर तक पहुँचे तेग़ वो तेग़ नहीं है जो न सर तक पहुँचे वो दुआ क्या है दुआ जो न असर तक पहुँचे जल्वा वो जल्वा है क्या जो न नज़र तक पहुँचे लुट गई होश की दुनिया तिरे दीवानों की खुल के गेसू जो तिरे तेरी कमर तक पहुँचे जज़्ब-ए-कामिल हो तो हो जाए नज़ारा आसाँ चश्म-ए-दिल वा हो तो जल्वा भी नज़र तक पहुँचे क़ैद में रख के भी ऐ वाए तसल्ली न हुई हाथ सय्याद के मुझ ज़ार के पर तक पहुँचे ये उमड़ता हुआ सैलाब अभी रुक जाए तेरा दामन जो मिरे दीदा-ए-तर तक पहुँचे फिर निगाहों में कोई अपनी बुरा ही न रहे आदमी अपने अगर ऐब-ओ-हुनर तक पहुँचे ज़िंदगी इश्क़ में मिलती है मिटा कर ख़ुद को दाना जब ख़ाक में मिल जाए समर तक पहुँचे क़ुर्ब साहिल का उन्हें होगा न 'जौहर' हासिल जो सफ़ीने न अभी मौज भँवर तक पहुँचे