तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई आज जागेगा रात-भर कोई ऐसे वो दिल को तोड़ देता है दिल न हो जैसे हो समर कोई रात होते ही मेरे पहलू में टूट कर जाता है बिखर कोई चंद लम्हों में तोड़ सब रिश्ते दे गया दर्द उम्र-भर कोई इश्क़ करता नहीं हूँ मैं तुम से कह के पछताया उम्र-भर कोई मैं वफ़ा कर के बा-वफ़ा ठहरा बेवफ़ा हो गया मगर कोई काट कर पेट जोड़ेगा पैसे तब ख़रीदेगा एक घर कोई तेरे आने की आस में 'अम्बर' देखता होगा रहगुज़र कोई