तेरा अरमाँ तिरी हसरत के सिवा कुछ भी नहीं दिल में अब तेरी मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं ज़िंदगी मुझ को कहाँ ले के चली आई है दूर तक साया-ए-ज़ुल्मत के सिवा कुछ भी नहीं हर तरफ़ फूल हक़ीक़त के खिले हैं लेकिन आँख में ख़्वाब-ए-हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं यूँ तिरे ग़म में हूँ पामाल कि लगता है मुझे ज़िंदगी जैसे अज़िय्यत के सिवा कुछ भी नहीं रह गई दब के मिरे दिल ही में उम्मीद-ए-विसाल अब मलाल-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त के सिवा कुछ भी नहीं बात क्या है कि मिरे दोस्तों के हाथों में संग-ए-दुश्नाम-ओ-मलामत के सिवा कुछ भी नहीं शे'र कहते हो तो ये बात भी नज़रों में रहे शाइरी शरह-ए-तबीअ'त के सिवा कुछ भी नहीं