तेरा चेहरा देख के हर शब सुब्ह दोबारा लिखती है बर्ग-ए-गुल पर मौज-ए-सबा भी नाम तुम्हारा लिखती है चप्पा चप्पा मेरा माज़ी जिस के दम से रौशन है अपने दिल पर वो भी कभी क्या नाम तुम्हारा लिखती है किस का चेहरा किस की आँखें देख के काली लम्बी रात सोच में डूबी चुपके चुपके चाँद सितारा लिखती है बे-बस कश्ती पढ़ लेती है फ़ितरत की वो भी तहरीर मौज-ए-बला जब आब-ए-रवाँ पर कोई इशारा लिखती है कारोबार-ए-शौक़ में अब तो हालत ये आ पहुँची है सुब्ह ज़ियाँ तहरीर करे तो शाम ख़सारा लिखती है रात की काली तहरीरों से तब तक हूँ महफ़ूज़ 'निज़ाम' एक सितारा जब तक रुख़ पर सुब्ह का तारा लिखती है