तेरा सुलूक मुझ से है अग़्यार की तरह आँखों में जो खटकता हूँ मैं ख़ार की तरह मुबहम हर इक बात सनम की लगे मुझे इक़रार भी लगे मुझे इंकार की तरह शतरंज जैसी मुझ को लगे है ये ज़िंदगी चलना हर एक चाल समझदार की तरह शाइ'र समझ के तुझ को बुलाया था बज़्म में ग़ज़लों को यूँ न गा तू गुलू-कार की तरह होश-ओ-हवास गुम हैं जो उस के फ़िराक़ में ख़ुद को समझ रहा हूँ मैं बीमार की तरह साइल तुम्हारे दर पे जो आए कभी ज़की उस को नवाज़िए किसी दिलदार की तरह क़ाबू में रख ज़बान को अपनी सदा 'ज़की' रिश्तों को काटती है ये तलवार की तरह