तेरे अल्ताफ़ का लुत्फ़ उठाते रहे नूर बरसा किया हम नहाते रहे कौन था वो ख़ुदाया ख़ुदा का जमाल मन ही मन में पहेली बुझाते रहे ये समझ कर फ़क़ीरी ही में है ख़ुदा गुन हमेशा फ़क़ीरों के गाते रहे राज़ हक़-आश्ना का खुला जब कभी बादशह तक हुज़ूरी में आते रहे हम ने सहरा में तन्हा जलाया दिया फिर सदा आँधियों से बचाते रहे सब्र की जुस्तुजू में फिरे दर-ब-दर 'यश' गदागर से ये फ़ैज़ पाते रहे