तेरे दर से उठे ग़म उठाते रहे बज़्म-ए-ख़्वाब-ए-मोहब्बत सजाते रहे चलते चलते मिले कितने दश्त-ए-जुनूँ गीत उल्फ़त के हम तो सुनाते रहे ख़ुद तो जेहद-ओ-अमल से गुरेज़ाँ रहे नक़्श-ए-क़िस्मत मगर वो बताते रहे यूँ तो तारीक थी अपनी राह-ए-सफ़र ख़ून-ए-दिल से दिये हम जलाते रहे रेगज़ारों में हुस्न-ए-वफ़ा का सिला यार यारों से नज़रें चुराते रहे