तिरे दिल में समाना चाहता हूँ तुझे अपना बनाना चाहता हूँ तिरी आँखें हैं या कोई समुंदर मैं इन में डूब जाना चाहता हूँ कभी होंटों पे आ तू गीत बन कर मैं तुझ को गुनगुनाना चाहता हूँ तिरे नज़दीक आना है सो पहले मैं ख़ुद से दूर जाना चाहता हूँ कभी ख़्वाबों से मेरे रू-ब-रू आ तुझे दुल्हन बनाना चाहता हूँ तू है कि रात बनना चाहती है मैं तुझ को दिन बनाना चाहता हूँ तू अपने दिल की गलियों को सजा ले मैं इन में आना-जाना चाहता हूँ जिसे मुमकिन नहीं हो जोड़ पाना मैं इतना टूट जाना चाहता हूँ मुझे तू इश्क़ में पागल बना दे मैं थोड़ा मुस्कुराना चाहता हूँ ये कुछ टूटे दिए हैं पास मेरे इन्हें सूरज बनाना चाहता हूँ हसीं इक शे'र है 'रिज़वान' वो कोई ग़ज़ल उस को बनाना चाहता हूँ