तिरे ही घर से उठे तेरी राह से गुज़रे वो हादसात जो मेरी निगाह से गुज़रे मुझे ख़बर नहीं किस तरह कोई जीता है ये उन से पूछ जो हाल-ए-तबाह से गुज़रे जो मेरे हाल पे हँसता है देख कर मुझ को ख़ुदा करे वो तिरी जल्वा-गाह से गुज़रे जिसे यक़ीं नहीं आता मिरी वफ़ाओं का वो एक दिन तो मोहब्बत की राह से गुज़रे ज़माना रोएगा सुन सुन के दास्ताँ उन की जो इंक़लाब कि मेरी निगाह से गुज़रे वो देख सकता है जलवों का तेरे आईना जो मेरे दिल से जो मेरी निगाह से गुज़रे