तेरे ज़ख़्मों की अयादत नहीं करने वाले अब दिखावे की मोहब्बत नहीं करने वाले तू ने ये हुस्न जिन्हें सौंप दिया है वो लोग तेरी आँखों की हिफ़ाज़त नहीं करने वाले हम को तदबीर से इन मुश्किलों में डाला गया जब भी ठानी कि इबादत नहीं करने वाले हाँ वही लोग बने फिरते हैं अब शाह-ए-सुख़न वो जो कहते थे मोहब्बत नहीं करने वाले टूटी दीवार से अपनों को महक आती है इस लिए घर की मरम्मत नहीं करने वाले