तेरे पहलू में जी रही थी कभी ज़िंदगी मेरी ज़िंदगी थी कभी बारिशों पर मिरी न जाओ तुम आग अंदर कहीं लगी थी कभी याद कर के मैं हँस रही हूँ आज मैं भी तेरे लिए दुखी थी कभी वो भी दिन थे कि मैं यही दुनिया तेरी आँखों से देखती थी कभी याद होगा अभी तलक तुझ को मैं भी तेरी ही ज़िंदगी थी कभी मुझ को क़ाइल न कर दलीलों से मैं भी तक़दीर से लड़ी थी कभी अब कभी मुड़ के देखती ही नहीं दिल की दहलीज़ पे खड़ी थी कभी