तिरे यक़ीन पे हम ने यक़ीन यार किया न हो रहा था हमें फिर भी बार-बार किया नमी वो आँख में रौशन हुई है मुद्दत बा'द नमी कि जिस का अज़ल से है इंतिज़ार किया दिलासा दे के न लग़्ज़िश को तू गुनाह बना मुझे ज़रा भी नदामत नहीं कि प्यार किया ज़मीं रही न रहा आसमाँ भरोसे का ख़ुदा की ज़ात पे जिस दिन से ए'तिबार किया ख़िरद तो इश्क़ को ख़ातिर में ही नहीं लाता क़रार दिल को दिया दिल ही बे-क़रार किया चले हैं सिलसिले जब से तुझे मनाने के हमें हमारी अना ने ही शर्मसार किया तिरा वो राज़-ए-निहाँ आज भी निहाँ ही है ये बात और कि तू ने तो आश्कार किया मिले कोई भी हँसी रहती है लबों पे मिरे अजीब लहजा उदासी ने इख़्तियार किया