तेरी आँखों में रंग-ए-मस्ती है हाँ मुझे ए'तिबार-ए-हस्ती है मेरा होना भी कोई होना है मेरी हस्ती भी कोई हस्ती है जान का रोग है ये गिर्या-ए-ग़म उम्र भर ये घटा बरसती है जिस तरह चाँदनी मज़ारों पर दिल पे यूँ बे-कसी बरसती है दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो ये वही आरज़ू की बस्ती है 'सैफ़' इस ज़िंदगी को क्या कहिए एक मय्यत-ब-दोश हस्ती है