तेरी आँखों से दोस्ती हुई है तब कहीं जा के रौशनी हुई है अब तुझे उज़्र क्या है आने में देख बरसात भी थमी हुई है ये ख़सारा तो मैं उठा चुकी हूँ ये मोहब्बत तो मैं ने की हुई है सिर्फ़ ये शाम ही नहीं है सर्द बर्फ़ बातों में भी जमी हुई है तुम से इतना भी कह नहीं पाई तुम से मिल कर मुझे ख़ुशी हुई है इतने बरहम हो किस लिए आख़िर क्या मोहब्बत में कुछ कमी हुई है