तिरी गली में तिरे जाँ-निसार बैठे हैं निगाह-ए-लुत्फ़ के उमीद-वार बैठे हैं ज़मीं पे सर को झुकाए हुए तसव्वुर में मिसाल-ए-नक़्श-ए-क़दम ख़ाकसार बैठे हैं न छेड़ हम को ख़ुदा के लिए कि ऐ वाइज़ हम अपने फ़े'लों से ख़ुद शर्मसार बैठे हैं फ़िराक़ में दिल-ए-मुज़्तर का इज़्तिराब न पूछ जिगर को थामे हुए बे-क़रार बैठे हैं रवाना क़ाफ़िले वाले तो हो चुके 'रौशन' हम इंतिज़ार में लैल-ओ-नहार बैठे हैं