तेरी गली में जो मिला उस से पता पूछा तिरा सब तुझ से थे ना-आश्ना पर सब में था शोहरा तिरा कोई न था जब आश्ना हम ने किया चर्चा तिरा ऐ हर किसी के आश्ना अब हम से क्या रिश्ता तिरा तू जब हुआ पीर-ए-मुग़ाँ थे सब ही तेरे मद्ह-ख़्वाँ रह कर ख़मोश ऐ ख़ुद-निगर हम ने भरम रक्खा तिरा उन से तअ'ल्लुक़ क़त्अ कर जिन से हुआ तू मो'तबर रख ना-शनासों पर नज़र रह जाएगा पर्दा तिरा औरों के नक़्श-ए-पा पे हम किस तरह से रखते क़दम लाखों नुक़ूश-ए-पा से था छलका हुआ जादा तिरा तू कर उन्ही पर सख़्तियाँ रौशन है जिन से तेरी जाँ उन पर ही तू रह मेहरबाँ करते हैं जो सौदा तिरा बरसों से हैं दीदा-वराँ तेरी गली में सरगिराँ सब कुछ धरा रह जाएगा चल दे जो बंजारा तिरा है ये हमारा ही लहू अब तक रहा तू सुर्ख़-रू हम दें न जिस दिन ख़ूँ-बहा बुझ जाएगा चेहरा तिरा ऐ शहर-ए-मर्दुम-ना-शनास ऐ बज़्म-ए-फ़न-ना-आशना सन्नाटे बोलेंगे यहाँ छोड़ें जो हम कूचा तिरा तू मुनफ़रिद आलम से है ये सब हमारे दम से है मुल्क-ए-सुख़न में हम से ही गूँजा हुआ नग़्मा तिरा हो जब तिरा क़िस्सा रक़म और रोक लें इक हम क़लम किस ज़िक्र किस उन्वान से फिर नाम आएगा तिरा