तीर नज़रों में तो अबरू में कमाँ ढूँडता हूँ उस की आँखों में गई रुत के निशाँ ढूँडता हूँ नश्शा-ए-क़ुर्ब से बढ़ कर है तिरी खोज मुझे तू जहाँ मिल न सके तुझ को वहाँ ढूँडता हूँ ताज़ा वारिद हूँ मियाँ और ये शहर-ए-दिल है कुछ कमाने को यहाँ कार-ए-ज़ियाँ ढूँडता हूँ शक की बे-सम्त मसाफ़त ही मुझे मार न दे जो यक़ीं मुझ को दिला दे वो गुमाँ ढूँडता हूँ अपने अंदर मुझे कर्बल का समाँ लगता है सर-बुलंदी के लिए नोक-ए-सिनाँ ढूँडता हूँ अस्र-ए-हाज़िर भी लगे हर्फ़-ए-मुकर्रर 'जाज़िब' अपने होने के लिए ताज़ा जहाँ ढूँडता हूँ