तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है आश्ना शक्ल हर हसीं की है हुस्न से दिल लगा के हस्ती की हर घड़ी हम ने आतिशीं की है सुब्ह-ए-गुल हो कि शाम-ए-मय-ख़ाना मद्ह उस रू-ए-नाज़नीं की है शैख़ से बे-हिरास मिलते हैं हम ने तौबा अभी नहीं की है ज़िक्र-ए-दोज़ख़ बयान-ए-हूर ओ क़ुसूर बात गोया यहीं कहीं की है अश्क तो कुछ भी रंग ला न सके ख़ूँ से तर आज आस्तीं की है कैसे मानें हरम के सहल-पसंद रस्म जो आशिक़ों के दीं की है 'फ़ैज़' औज-ए-ख़याल से हम ने आसमाँ सिंध की ज़मीं की है