तेरी यादों को बुला कर तिरे गेसू की तरह पहने रहते हैं दरीचे मिरी ख़ुश्बू की तरह हाए जब हिज्र की शब में तिरे बोसों की मिठास फैल जाती है मिरे होंटों पे जादू की तरह तू मिरे बाग़ से तोड़े हुए ग़ुंचे की मिसाल मैं तिरे दश्त में भटके हुए आहू की तरह आसमाँ बाँटता रहता है नसीबे 'अख़्तर' दिन को मोती की तरह रात को आँसू की तरह