तेज़ हवाएँ हैं ग़म की ख़ैर मनाओ मौसम की जब हम ने कुछ ग़ौर किया दिल में एक किरन चमकी आज भी है अपनी ही जगह बात हयात-ए-बरहम की पाएँ भी तो क्या ता'बीर हम इक ख़्वाब-ए-मुबहम की फूल से हँसते चेहरे हैं रौनक़ बाग़-ए-आलम की तुम भी वही हो हम भी वही कोशिश सब ने पैहम की ज़ौक़-ए-सफ़र है हुस्न-ए-नज़र कुछ भी कहो पेच-ओ-ख़म की कैसे हो हस्सास 'रबाब' अब क्या सूरत है ग़म की