था इंतिज़ार मुझे चाँद के निकलने का ये वक़्त है मिरे एहसास के पिघलने का सुनहरे रंग की दिखती है ज़िंदगी यारो है पुर-सुकूँ ये नज़ारा अलाव जलने का वो आँच छोड़ गया मुस्कुराते होंटों की किया था अहद कभी जिस ने साथ चलने का वो लड़खड़ा गया ख़ुद हाथ छोड़ कर मेरा जो दे रहा था मुझे मशवरा सँभलने का उनींदी पलकों तले देखता रहा शब-भर नज़ारा ख़्वाब की परछाइयों में ढलने का न मेरे पँख खुले और न ज़िंदगी बदली मुझे न आया हुनर बख़्त को बदलने का