ठहर के राह में कुछ देर इंतिज़ार करो वफ़ा करो न करो मेरा ए'तिबार करो है क़ैद मज़हब-ओ-मिल्लत गिराँ तुम्हारे लिए अदा कभी तो नमाज़-ए-सद-इफ़्तिख़ार करो है बेवफ़ा बड़ी ज़ालिम हसीना माह-जबीं कभी तो उस का भरोसा बे-इख़्तियार करो गवारा मुझ को नहीं थी तुम्हारी रुस्वाई था वो जुनून मिरा मुझ पे ए'तिबार करो कभी तो प्यार से मेरा भी नाम तुम लिक्खो मिरी तसल्ली को कुछ मेरे ग़म-गुसार करो 'शगुफ़्ता' इतनी भी ग़फ़लत तुम्हारी ठीक नहीं कभी तो हक़ के लिए अपनी जाँ निसार करो