ठहराव आ गया है कुछ ऐसा ज़िंदगी में कि बहते बहते झरना मिल जाए जूँ नदी में पूजा है उस ने तुम को चाहा न आशिक़ी में अब लुत्फ़ क्या मिलेगा इस दिल को बंदगी में दिल हसरतों का जमघट फिर कैसा सूना-पन ये दो चार पल की ख़ुशियाँ आईं थीं ज़िंदगी में दिल छू गया ये उन का होना पड़ा पशेमाँ कैसा असर था आख़िर आँखों की इस नमी में चाहो तो याद रखो चाहो अगर भुला दो एहसास एक सा है इस दिल को बे-ख़ुदी में तन्क़ीद पर हमारी 'उज़मा' उदास क्यूँ है तुम में जो नक़्स ढूँडे शायद वो थे हमीं में