थका ले और दौर-ए-आसमाँ तक फिर आख़िर गर्दिश-ए-क़िस्मत कहाँ तक बड़ी उस दिल की बेताबी यहाँ तक हमीं हमीं हम हैं ज़मीं से आसमाँ तक दम-ए-वा'दा उन्हें है बार हाँ तक ज़बाँ थक जाए जो ऐ बे-ज़बाँ तक मुझे पीना पड़े आख़िर वो आँसू जो भर जाते ज़मीं से आसमाँ तक कोई सौ बार उड़े सौ बार बैठे क़फ़स से यूँ हम आए आशियाँ तक गिला भी था किसी का राज़ कोई कि आ कर रह गया मेरी ज़बाँ तक सलामत हैं अगर मेरे पर-ओ-बाल क़फ़स जाएगा उड़ कर आशियाँ तक मिरी बेदारियाँ बेकार क्यूँ जाएँ उन्हें पहुँचा दो चश्म-ए-पासबाँ तक कुछ उस ने इस तरह काटी मिरी बात कि टुकड़े हो गई मेरी ज़बाँ तक जुनूँ से हम न कोताही करेंगे हमारा हाथ पहुँचेगा जहाँ तक ख़ुदाया मेरे सज्दे दूर ही से पहुँच जाएँ किसी के आस्ताँ तक सहारा कुछ तो दरमानदों को होता पहुँच जाते जो गर्द-ए-कारवाँ तक मिरी फ़रियाद सुन कर चुप रहेंगे उसे पहुँचाएँगे वो आसमाँ तक मुझी पर छोड़ दो मेरी मय-ए-तल्ख़ मज़ा उस का है कुछ मेरी ज़बाँ तक कलीसा-ओ-हरम दोनों हैं आबाद मिरे नाक़ूस तक मेरी अज़ाँ तक कुछ ऐसा रब्त है सय्याद के साथ हमीं हम हैं क़फ़स से आशियाँ तक हमीं ठुकराते जाएँ जो वहाँ जाएँ पहुँच जाएँ यूँही हम आस्ताँ तक मआसी के सिवा दो दो फ़रिश्ते इन्हें लादे फिरूँ यारब कहाँ तक पहुँच जाऊँ जो यारब मय-कदे में मिरा पानी भरे पीर-ए-मुग़ाँ तक वो ख़ूगर नाला-ए-दुश्मन का हो जाए न सुनता हो जो हर्फ़-ए-दास्ताँ तक 'रियाज़' आने में है उन के अभी देर चलो हो आएँ मर्ग-ए-ना-गहाँ तक