थे हम इस्तादा तिरे दर पे वले बैठ गए तू ने चाहा था कि टाले न टले बैठ गए बज़्म में शैख़-जी अब है कि है याँ ऐब नहीं फ़र्श पर गर न मिली जा तो तले बैठ गए ग़ैर बद-वज़अ' हैं महफ़िल से शिताब उन की उठो पास ऐसों के तुम ऐ जान भले बैठ गए घर से निकला न तू और मुंतज़िरों ने तेरे दर पे नाले किए याँ तक कि गले बैठ गए ना-तवाँ हम हुए याँ तक कि तिरी महफ़िल तक घर से आते हुए सौ बार चले बैठ गए अश्क और आह की शिद्दत न थमी गरचे 'बक़ा' घर के घर इस में हज़ारों के जले बैठ गए