थी हम ने प्यार में हर बात मानी क्या करते हमें ही कहते रहे वो दिवानी क्या करते कल उस के हिज्र की दीवार तोड़ दी हम ने नए ज़माने में यादें पुरानी क्या करते तुम्हारे साथ ही किरदार था हमारा भी जो तुम गए तो हम आगे कहानी क्या करते यूँही उठा के बुढ़ापे को सौंप दी हम ने तुम्हारे बाद भरी ये जवानी क्या करते निगल लिया वो नगीना ब-वक़्त-ए-रुख़्सती ही तुम्हारे नाम की थी जो निशानी क्या करते 'दिया' ये आँख तो इक ख़्वाब से ही भर आई तुम्हारे नाम पे हम ज़िंदगानी क्या करते