थोड़ी चाँदी थोड़ा गारा लगता है तब जा कर आईना प्यारा लगता है फ़ुर्सत के लम्हात कमाने की ख़ातिर अच्छा-ख़ासा वक़्त हमारा लगता है मैं दरिया के वहशी-पन से वाक़िफ़ हूँ मेरे घर के साथ किनारा लगता है उन से ही सिंघार की चीज़ें बनती हैं जिन पेड़ों के जिस्म पे आरा लगता है हम दोनों ने रात गुज़ारी आँखों में आईना भी हिज्र का मारा लगता है