ठोकरें खाइए पत्थर भी उठाते चलिए आने वालों के लिए राह बनाते चलिए अपना जो फ़र्ज़ है वो फ़र्ज़ निभाते चलिए ग़म हो जिस का भी उसे अपना बनाते चलिए कल तो आएगा मगर आज न आएगा कभी ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में जो हैं उन को जगाते चलिए अज़्म है दिल में तो मंज़िल भी कोई दूर नहीं सामने आए जो दीवार गिराते चलिए नफ़रतें फ़ासले कुछ और बढ़ा देती हैं गीत कुछ प्यार के इन राहों में गाते चलिए राह-ए-दुश्वार है बे-साया शजर हैं सारे धूप है सर पे क़दम तेज़ बढ़ाते चलिए काम ये अहल-ए-जहाँ का है सुनें या न सुनें अपना पैग़ाम ज़माने को सुनाते चलिए दिल में सोए हुए नग़्मों को जगाना है अगर मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाते चलिए रास्ते जितने हैं सब जाते हैं मंज़िल की तरफ़ शर्त-ए-मंज़िल है मगर झूमते गाते चलिए कुछ मिले या न मिले अपनी वफ़ाओं का सिला दामन-ए-रस्म-ए-वफ़ा अपना बढ़ाते चलिए यूँ ही शायद दिल-ए-वीराँ में बहार आ जाए ज़ख़्म जितने मिलें सीने पे सजाते चलिए जब तलक हाथ न आ जाए किसी का दामन धज्जियाँ अपने गिरेबाँ की उड़ाते चलिए शौक़ से लिखिए फ़साना मगर इक शर्त के साथ इस फ़साने से मिरा नाम मिटाते चलिए आज के दौर में 'नौशाद' यही बेहतर है इस बुरे दौर से दामन को बचाते चलिए