ठोकरें लगती हैं मंज़िल पे गुज़र होने तक हौसला चाहिए इत्माम-ए-सफ़र होने तक जल के मरते हैं पतंगे तो गुज़रता है तअब शम्अ' इस वास्ते रोती है सहर होने तक जी में ये ठान के बैठे हैं तिरी चौखट पर हम न उट्ठेंगे इनायत की नज़र होने तक पुख़्तगी फ़न में तिरे आएगी आते आते अर्सा दरकार है पौदे से शजर होने तक