तिफ़्ल को सुलाना है थपकियाँ समझती हैं फ़िक्र सारी माओं की लोरियाँ समझती हैं आब-ओ-ताब रखते हैं लोग भी समुंदर भी कौन कितना गहरा है डुबकियाँ समझती हैं सुब्ह सुब्ह जाती हैं रोटियाँ कमाने को बाप की जो हालत है बेटियाँ समझती हैं वो भी ज़ुल्म सहती हैं वो भी टूट जाती हैं दर्द एक औरत का चूड़ियाँ समझती हैं जब 'शुऊर' दिलबर का इंतिज़ार करता है उस की बे-क़रारी को खिड़कियाँ समझती हैं