तिरा करम कि मैं जब मात तक पहुँच जाता तो कोई हाथ मिरे हाथ तक पहुँच जाता मैं उस की बज़्म में चुप-चाप ही रहा करता मगर वो फिर भी मिरी बात तक पहुँच जाता मैं भाव-ताव अगर करता तो वो ख़्वाब-फ़रोश क़यास है मिरी औक़ात तक पहुँच जाता अगर न मिलता मुझे शाम माह-ए-आवारा यक़ीन मानो मैं घर रात तक पहुँच जाता मैं अपने भाई को परदेस क्यूँ बुलाता 'अक़ील' वो इस तरह मिरे हालात तक पहुँच जाता