तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ तमाम उम्र मोहब्बत की वहशतों में रहूँ ख़ुमार हसरत-ए-दीदार में रहूँ हर दम सवाद-ए-इश्क़ यूँही तेरी शिद्दतों में रहूँ ये ज़िंदगी की हरारत तिरे सबब से है मैं लम्हा लम्हा जुनूँ की तमाज़तों में रहूँ ये एहतिमाम-ए-शब-ओ-रोज़ हो मिरी ख़ातिर तिरे ख़याल की रंगीन ख़ल्वतों में रहूँ सँवारती हैं सदा जिस की चाहतें मुझ को मिरी दुआ है कि मैं उस की हसरतों में रहूँ ऐ अब्र-ए-वस्ल बरस और खुल के मुझ पे बरस मैं भीगी भीगी हवा की शरारतों में रहूँ शरीक-ए-शौक़-ए-सफ़र है अगर वो मेरा 'नाज़' मैं क्यूँ न मौसम-ए-गुल की बशारतों में रहूँ